❤श्री राधा वृन्दावनबिहारी❤

 
❤श्री राधा वृन्दावनबिहारी❤
जब हरि मुरली अधर धरत । थिर चर, चर थिर, पवन थकित रहैं, जमुना जल न बहत ॥ खग मौहैं मृग-जूथ भुलाहीं, निरखि मदन-छबि छरत । पसु मोहैं सुरभी विथकित, तृन दंतनि टेकि रहत ॥ सुक सनकादि सकल मुनि मोहैं ,ध्यान न तनक गहत । सूरदास भाग हैं तिनके, जे या सुखहिं लहत ॥1॥ (कहौं कहा) अंगनि की सुधि बिसरि गई । स्याम-अधर मृदु सुनत मुरलिका, चकित नारि भईं ॥ जौ जैसैं तो तैसै रहि गईं, सुख-दुख कह्यौ न जाइ । लिखी चित्र सी सूर ह्वै रहिं, इकटक पल बिसराइ ॥2॥ मुरली धुनि स्रवन सुनत,भवन रहि न परै; ऐसी को चतुर नारि, धीरज मन धरै ॥ सुर नर मुनि सुनत सुधि नम सिव-समाधि टरै । अपनी गति तजत पवन, सरिता नहिं ढरै ॥ मोहन-मुख-मुरली, मन मोहिनि बस करै । सूरदास सुनत स्रवन, सुधा-सिंधु भरै ॥3॥ बाँसुरी बजाइ आछे, रंग सौं मुरारी । सुनि कै धुनि छूटि गई, सँकर की तारी ॥ वेद पढ़न भूलि गए, ब्रह्मा ब्रह्मचारी । रसना गुन कहि न सकै, ऐसी सुधि बिसारी ! इंद्र-सभा थकित भइ, लगो जब करारी । रंभा कौ मान मिट्यौ, भूली नृत कारी ॥ जमुना जू थकित भई, नहीं सुधि सँभारी । सूरदास मुरली है, तीन-लोक-प्यारी ॥4॥ मुरली तऊ गुपालहिं भावत । सुनि री सखी जदपि नँदलालहिं, नाना भाँति नचावति । राखति एक पाइ ठाढ़ौ करि, अति अधिकार जनावति । कोमल तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ौ ह्वै आवति ॥ अति आधीन सुजान कनौड़े, गिरिधर नार नवावति । आपुन पौंढ़ि अधर सज्जा पर, कर पल्लव पलुटावति । झुकुटी कुटिल, नैन नासा-पुट, हम पर कोप करावति । सूर प्रसन्न जानि एकौ छिन , धर तैं सीस डुलावति ॥5॥ अधर-रस मुरली लूटन लागी । जा रस कौं षटरितु तप कीन्हौ, रस पियति सभागी ॥ कहाँ रही, कहँ तैं इह आई, कौनैं याहि बुलाई ? चकित भई कहतिं ब्रजबासिनि, यह तौ भली न आई ॥ सावधान क्यौं होतिं नहीं तुम, उपजी बुरी बलाई । सूरदास प्रभु हम पर ताकौं, कीन्हों सौति बजाई ॥6॥ अबहौ तें हम सबनि बिसारी । ऐसे बस्य भये हरि बाके, जाति न दसा बिचारी ॥ कबहूँ कर पल्लव पर राखत, कबहूँ अधर लै धारी । कबहुँ लगाइ लेत हिरदै सौं, नैंकहुँ करत न न्यारी मुरली स्याम किए बस अपनैं, जे कहियत गिरिधारी । सूरदास प्रभु कैं तन-मन-धन , बाँस बँसुरिया प्यारी ॥7॥ मुरली की सरि कौन करै । नंद-नंदन त्रिभुवन-पति नागर सो जो बस्य करै ॥ जबहीं जब मन आवत तब तब अधरनि पान करै । रहत स्याम आधीन सदाई आयसु तिनहिं करै ॥ ऐसी भई मोहिनी माई मोहन मोह करै । सुनहु सूर याके गुन ऐसे ऐसी करनि करै ॥8॥ काहै न मुरली सौं हरि जौरै। काहैं न अधरनि धरै जु पुनि-पुनि मिली अचानक भोरैं ॥ काहैं नहीं ताहि कर धारैं, क्यौं नहिं ग्रीव नवावैं । काहैं न तनु त्रिभंग करि राखैं, ताके मनहिं चुरावैं ॥ काहैं न यौ आधीन रहैं ह्वै, वै अहीर वह बेनु । सूर स्याम कर तैं नहिं टारत, बन-बन चारत धेनु ॥9॥ मुरलिया कपट चतुरई ठानी । कैसें मिलि गई नंद-नंदन कौं, उन नाहिं न पहिचानी ॥ इक वह नारि , बचन मुख मीठे, सुनत स्याम ललचाने । जाँति-पाँति की कौन चलावै, वाकैं रंग भुलाने ॥ जाकौ मन मानत है जासौं , सो तहँई सुख मानै । सूर स्याम वाके गुन गावत, वह हरि के गुन गानै ॥10॥ स्यामहिं दोष कहा कहि दीजै । कहा बात सुरली सौं कहियै, सब अपनेहिं सिर लीजै ॥ हमहीं कहति बजावहु मोहन, यह नाहीं तब जानी । हम जानी यह बाँस बँसुरिया, को जानै पटरानी ॥ बारे तैं मुँह लागत लागत, अब ह्वै गई सयानी । सुनहु सूर हम भौरी-भारी, याकी अकथ कहानी ॥11॥ मुरली कहै सु स्याम करैं री । वाही कैं बस भये रहत हैं, वाकैं रंग ढरैं री ॥ घर बन, रैन-दिना सँग डोलत, कर तैं करत न न्यारी । आई उन बलाइ यह हमकौं, कहा दीजियै गारी । अब लौं रहें हमारे माई, इहिं अपने अब कीन्हे । सूर स्याम नागर यह नागरि, दुहुँनि भलै कर चीन्हे ॥12॥ मेरे दुख कौ ओर नहीं । षट रितु सीत उष्न बरषा मैं, ठाढ़े पाइ रही ॥ कसकी नहीं नैकुहूँ काटत, घामैं राखी डारि । अगिनि सुलाक देत नहिं मुरकी, बेह बनावत जारि ॥ तुम जानति मोहिं बाँस बँसुरिया, अगिनि छाप दै आई । सूर स्याम ऐसैं तुम लेहु न, खिझति कहाँ हौ माई ॥13॥ श्रम करिहौ जब मेरी सौ । तब तुम अधर-सुधा-रस बिलसहु, मैं ह्वै रहिहौं चेरी सी । बिना कष्ट यह फल न पाइहौं, जानति हौ अवडेरी सी । षटरितु सीत तपनि तन गारौ, बाँस बँसुरिया केरी सी ॥ कहा मौन ह्वै ह्वै जु रही हौ, कहा करत अवसेरी सी । सुनहु सूर मैं न्यारी ह्वै हौं, जब देखौं तुम मेरी सी ॥14॥ मुरली स्याम बजावन दै री । स्रवननि सुधा पियति काहैं नहिं, इहिं तू जनि बरजै री । सुनति नहीं वह कहति कहा है, राधा राधा नाम । तू जानति हरि भूल गए मोहिं, तुम एकै पति बाम ॥ वाही कैं मुख नाम धरावत, हमहिं मिलावत ताहिं । सूर स्याम हमकौं नही बिसरे, तुम डरपति हौ काहि ॥15॥ मुरलिया मोकौं लागति प्यारी । मिली अचानक आइ कहूँ तैं, ऐसी रही कहाँ री ॥ धनि याके पितु-मातु, धन्य यह, धन्य-धन्य मृदु बालनि । धन स्याम गुन गुनि कै ल्याए, नागरि चतुर अमोलनि ॥ यह निरमोल मोल नहिं याकौ,भली न यातैं कोई । सूरदास याके पटतर कौ, तौ दीजै जौ होई ॥16॥
キーワード:
 
shwetashweta
作成者: shwetashweta

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コメント

rainbowgyrl

rainbowgyrlさんの言葉:

2229日 前
AWESOME THANKS for joining!!!!
m1a6c

m1a6cさんの言葉:

2322日 前
hello my friend
you make wonderful picture
))---((
( *0* )
 {    }    *~*~*
  ^ ^       *~*
good night and sleep well xxx
annabella100

annabella100さんの言葉:

2323日 前
WOWWWWW5*****
Hidalgo28

Hidalgo28さんの言葉:

2325日 前
 A wonderful creation! ☆ ☆ ☆ ☆ ☆
Thank you for your comments! ♥
All the best! Sincerely, Marcel. ♥ ✻ ♥
reception26

reception26さんの言葉:

2325日 前
Çok güzel olmuş ellerine sağlık.
moreno_gabriela

moreno_gabrielaさんの言葉:

2326日 前
wonderful!!!
elizamio

elizamioさんの言葉:

2327日 前
     ∧_∧
  ( =°ヮ°)つ:*♥ℒℴѵℯ.•*♡*•.¸
 •..(,(”)(”)¤°.¸¸.•´5 sᴛᴀʀs ❤

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