✨जय सियाराम✨

 
✨जय सियाराम✨
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राजत रघुबीर धीर, भञ्जन भव-भीर, पीर- हरन सकल सरजुतीर निरखहु, सखि! सोहैं | सङ्ग अनुज मनुज-निकर, दनुज-बल-बिभङ्ग-करन; अंग-अंग छबि अनङ्ग अगनित मन मोहैं || सुखमा-सुख-सील-अयन नयन निरखि निरखि नील कुञ्चित कच, कुण्डल कल, नासिका चित पोहैं | मनहु इंदुबिम्ब मध्य कञ्ज-मीन-खञ्जन लखि मधुप-मकर-कीर आए तकि तकि निज गौहैं || ललित गण्ड-मण्डल, सुबिसाल भाल तिलक झलक मञ्जुतर मयङ्क-अंक रुचिर बङ्क भौहैं | अरुन अधर, मधुर बोल, दसन-दमक दामिनि दुति, हुलसति हिय हँसनि चारु चितवनि तिरछौहैं || कम्बुकण्ठ, भुज बिसाल उरसि तरुन तुलसिमाल, मञ्जुल मुकतावलि जुत जागति जिय जोहैं | जनु कलिन्द-नन्दिनि मनि-इंद्रनील-सिखर परसि धँसति लसति हंससेनि-सङ्कुल अधिकौहैं || दिब्यतर दुकूल भब्य, नब्य रुचिर चम्पक चय, चञ्चला-कलाप, कनक-निकर अलि! किधौं हैं | सज्जन-चष-झष-निकेत, भूषन-मनिगन समेत, रूप-जलधि-बपुष लेत मन-गयन्द बोहैं || अकनि बचन-चातुरी तुरीय पेखि प्रेम-मगन पग न परत इत, उत, सब चकित तेहि समौ हैं | तुलसिदास यह सुधि नहि कौनकी, कहाँतें आई , कौन काज, काके ढिग, कौन ठाउँ को हैं ||
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