♥भक्तिमति मीराबाई♥

 
♥भक्तिमति मीराबाई♥
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माई म्हारी हरिजी न बूझी बात।पिंड मांसूं प्राण पापी निकस क्यूं नहीं जात॥पट न खोल्या मुखां न बोल्या, सांझ भई परभात।अबोलणा जु बीतण लागो, तो काहे की कुशलात॥सावण आवण होय रह्यो रे, नहीं आवण की बात।रैण अंधेरी बीज चमंकै, तारा गिणत निसि जात॥सुपन में हरि दरस दीन्हों, मैं न जान्यूं हरि जात।नैण म्हारा उघण आया, रही मन पछतात॥लेइ कटारी कंठ चीरूं, करूंगी अपघात।मीरा व्याकुल बिरहणी रे, काल ज्यूं बिललात॥
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shwetashweta
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