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❤️श्री राधा मदनमोहन❤️
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धरो मन ! युगल माधुरी ध्यान |
मनमोहन मोहिनि श्यामा अरु, मोहिनि मोहन कान्ह |
इन दोउन कहँ विलग न मानिय, द्वै देही इक प्रान |
पै लीला-विलास मँह मोहन, अनुचर रसिक प्रमान |
रिझवत नित निकुंज श्यामा कहँ, मरम न सक कोउ जान |
यह ‘कृपालु’ रस रसिकहिं जानत, जो नित कर रह पान ||
- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज, प्रेम रस मदिरा, युगल माधुरी (06)
अरे मन ! तू प्रिया-प्रियतम की रूपमाधुरी का निरंतर ही ध्यान किया कर | श्यामसुन्दर को मोहित करने वाली किशोरी जी एवं किशोरी जी को मोहित करने वाले श्यामसुन्दर हैं | अरे मन ! इन दोनों को भिन्न न समझना, इन दोनों के देह तो दो अवश्य हैं किन्तु प्राण एक ही है | हाँ ! रसिकों के सिद्धांतों के अनुसार लीला-विलास के क्षेत्र में श्यामसुन्दर दास अवश्य हैं, तथा नित्य ही निकुंजों के मध्य में विविध प्रकार से किशोरी जी को रिझाया करते हैं | इस मर्म को रसिकों के सिवा और कोई भी नहीं जान सकता | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि इस निकुंज रस-माधुरी को रसिक ही जानते हैं, जो कि इस रस का निरन्तर ही पान किया करते हैं |
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